बूढ़ाकेदार में धूमधाम से मनाई गई गुरु कैलापीर दीपावली बग्वाल
नई टिहरी,। बूढ़ाकेदार धाम में इस वर्ष भी गुरु कैलापीर दीपावली बग्वाल का भव्य आयोजन बड़ी आस्था और उत्साह के साथ हुआ। कार्तिक दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाई जाने वाली गुरु कैलापीर बग्वाल क्षेत्र की अनोखी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा है, जो हर वर्ष स्थानीय निवासियों के साथ-साथ दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचती है। बग्वाल पर्व के दौरान पुंडारा के विशाल सेरे में हजारों की भीड़ उमड़ी। परंपरा के अनुसार श्रद्धालुओं ने ‘भैलो’ घुमाकर देवधार्मिक विधि निभाई और अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि तथा कल्याण की कामना की। पूरा परिसर ढोल-दमाऊं, रणसिंगे और देवी गीतों से गूंज उठा।
कार्यक्रम को और भव्य बनाने के लिए लोक संस्कृति के प्रसिद्ध कलाकार पदम गुसाईं और रवि गुसाईं की सांस्कृतिक टीम ने मनमोहक प्रस्तुतियां दीं। उनके लोकगीतों, झुरुकों और पारंपरिक नृत्यों ने उपस्थित श्रद्धालुओं को देर तक बांधे रखा। कलाकारों की प्रस्तुति पर युवाओं से लेकर बुजुर्ग तक सभी थिरकने को मजबूर हो गए।
बग्वाल के अवसर पर स्थानीय लोगों ने इसे अपनी आस्था, परंपरा और सामुदायिक एकजुटता का प्रतीक बताया। आयोजन के सफल संचालन के लिए गांवों की समितियों, पुजारियों और स्थानीय प्रशासन की ओर से विशेष व्यवस्थाएं की गईं। गुरु कैलापीर बग्वाल के साथ ही बूढ़ा केदार क्षेत्र एक बार फिर देवभूमि की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का साक्षी बना, जहां परंपरा और भक्ति का अनोखा संगम देखने को मिला। पुंडारा के सेरा में गुरु कैलापीर के हजारों भक्तों ने आस्था की दौड़ लगाई।
मंदिर समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र नेगी ने बताया कि गुरु कैलापीर दीपावली बग्वाल हमारी सांस्कृतिक पहचान है। गुरु कैलापीर देवता चंपावत से यहां आए। जब आक्रमणकारियों के अत्याचार बढ़ गए तो गुरु कैलापीर की पूजा में व्यवधान आया। तब गुरु कैलापीर वहां से टिहरी गढ़वाल आ गए। ये टिहरी राजवंश के अराध्य रहे हैं। हमारे सभी वीर भड़ों के अराध्य रहे। जब भी टिहरी गढ़वाल पर आक्रमण हुआ तब सभी वीर भड़ों की सहायता की। गुरु कैलापीर के आशीर्वाद से हमारे यहां सुख समृद्धि आती है। इसलिए हम बूढ़ा केदार धाम में गुरु कैलापीर दीपावली बग्वाल मनाते हैं। हर साल इस समारोह में बड़ी संख्या में प्रवासी आते हैं।



