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उत्तरखंड बजट: प्रदेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती,कर राजस्व से 26 हजार करोड़ रुपये जुटाने का रखा लक्ष्य
Uttarakhand Budget प्रदेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती वेतन भत्ते पेंशन मजदूरी के रूप में गैर विकास मदों पर बढ़ने खर्च से पार पाने की है। उत्तराखंड सरकार ने आगामी वित्तीय वर्ष में कर राजस्व से 26 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। एसजीएसटी आबकारी स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन के साथ ही खनन से अधिक आय की उम्मीदें बंधी हैं।
उत्तराखंड के लिए अभी अपनी स्वयं की आय के बल पर सभी खर्चों की प्रतिपूर्ति दूर की कौड़ी है। केंद्र से मिलने वाली सहायता और 15वें वित्त आयोग की संस्तुतियों के आधार पर अनुदान के बूते वेतन, भत्ते और पेंशन के भुगतान को लेकर हर महीने संकट की नौबत से कुछ हद तक राहत मिली है।
आने वाले समय में यह खर्च और बढ़ने जा रहा है। इससे निपटने के लिए प्रदेश सरकार ने स्वयं के कर राजस्व को बढ़ाने की पहल की है। वित्तीय वर्ष 2025-26 में स्वयं के कर राजस्व से 26 हजार से अधिक धनराशि जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। एसजीएसटी, आबकारी, स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन के साथ ही खनन से अधिक आय की उम्मीदें बांधी गई हैं।
प्रदेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती वेतन, भत्ते, पेंशन, मजदूरी के रूप में गैर विकास मदों पर बढ़ने खर्च से पार पाने की है। राहत की बात यह है कि प्रदेश सरकार ने इस अवधि में स्वयं के कर राजस्व वृद्धि की। 2024-25 में स्वयं के कर राजस्व से 22,509 करोड़ प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया।
वित्तीय वर्ष समाप्त होने तक लक्ष्य से अधिक धनराशि प्राप्ति होने की उम्मीद है। कर राजस्व बढ़ाने के प्रयासों को सफलता मिलने से उत्साहित होकर इस लक्ष्य में नए वित्तीय वर्ष में 4000 करोड़ की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। इससे पहले वित्तीय वर्ष 2023-24 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2024-25 में 3000 करोड़ से अधिक कर राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा गया था।
15वें वित्त आयोग की संस्तुतियों पर अगले वित्तीय वर्ष तक मिलेगी सहायता प्रदेश सरकार को वित्तीय संकट से उबारने में 15वें वित्त आयोग की संस्तुतियों की बड़ी भूमिका रही है। इनके आधार पर वर्ष 2025-26 तक सरकार को केंद्र से निर्धारित वित्तीय सहायता मिलती रहेगी।
वर्ष 2020-21 से यह सहायता मिलनी प्रारंभ हुई थी। आयोग ने पहली बार राजस्व घाटा अनुदान के रूप में पांच वर्षों तक 28,147 करोड़ की धनराशि देने की राह तैयार की थी। केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी बढ़ी। इसका परिणाम यह हुआ कि हर महीने वेतन-भत्ते व पेंशन देने के लिए ऋण लेने को विवश राज्य को विकास कार्यों के लिए अधिक धनराशि उपलब्ध हो सकी।