खोजी पत्रकार पंडित आयूष पर हुए प्राणघाती हमले की वजह बार माफ़ियाँ या कुछ और?
देहरादून। इन दिनों उत्तराखंड में राजनीतिक हलचल जोरों पर है, इसी बीच शनिवार देर रात 2 बजे पंडित आयुष पर देहरादून के राजपुर रोड पर हमला हो जाता हैं। दो दिन से वायरल तस्वीरों में आयुष लहुलूहान दिखाई पड़ते हैं। जिसके बाद आयुष द्वारा अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ थाना राजपुर में तहरीर दी जाती है। तहरीर देते वक़्त थाना प्रभारी द्वारा बताया जाता है कि आयुष के ख़िलाफ़ भी एक तहरीर उनके पास पहले से आयी हुई है।
थाना इंचार्ज राजपुर ने बताया राजपुर रोड स्थित फ़र्ज़ी कैफ़े मैं काम करने वाले कुछ वेटरों द्वारा उनके ख़िलाफ़ तहरीर दी गई है। पुलिस दोनों तरफ़ से मुक़दमा क़ायम करती है और अपनी जाँच शुरू करती है। फिर ये सवाल उठने लगते हैं ये क्या यह हमला झूठा है? क्योंकि दूसरी पार्टी द्वारा दी गई शिकायत के मुताबिक़ कैफे वालों का पीछा कर आयुष द्वारा मारपीट की गई। इस पूरे मामले में जिस तरह से पुलिस ने गंभीर रूप से घायल आयुष की तहरीर से पहले कैफे वालों का मुक़दमा लिखा वह भी बड़ा सवाल है। कैफे वालों को कोई चोट नहीं आयी, न तो उनकी गाड़ी क्षतिग्रस्त हुई, न ही उनके द्वारा पुलिस को कोई सूचना दी गई।
वहीं आयुष द्वारा उन पर हमले के तुरंत बाद 112 नंबर पर कॉल की गई जिसके साक्ष्य ख़बर में संगलगन है। उसी समय शहर के कप्तान को पूरी घटना की विस्तृत जानकारी दी गई और चार मिनट तक शहर कप्तान से बात कर उन्हें चोटिल अवस्था की तस्वीरें साझा की गई, उसी दौरान थाना प्रभारी राजपुर को भी यह जानकारी मोबाइल के माध्यम से आयुष द्वारा दी गई। जहां उन्होंने आयुष को फ़ोरन अस्पताल जाकर मेडिकल कराने की सलाह दी। इन सबके स्क्रीनशॉट आयुष द्वारा शेयर किए गए। iPhone में लिए स्क्रीन शॉट्स के मुताबिक़ कैफे का एक लड़का 2:1 मिनट पर आयुष के कैमरे में क़ैद होता है।
एक दूसरी तस्वीर जिसमें आयुष बुरी तरह लहूलुहान हैं यह तस्वीर 2:5 मिनट पर खींची जाती है। यानी एक व्यक्ति राजपुर थाना अंतर्गत चार दुकान ये पाँस आयुष को बातों में लगाता है और अगले ही क्षण उस पर हमला हो जाता है हमला तक़रीबन दो मिनट तक चलता है और उसके बाद आयुष वहाँ से अपनी कार लेकर जान बचाते हुए भागते है। हमलावर दोबारा गाड़ी में बैठते हैं और आयुष की गाड़ी का पीछा करते है। इसके बाद यह गाड़ी सीधे IT पार्क चौकी पर जाकर खड़ी हो जाती है जहाँ आयुष एक और फ़ोटो खींचते हैं इस फ़ोटो में गंभीर रूप से घायल आयुष के पीछे IT पार्क चौकी के पैकेट पर खड़े तीन सिपाही ड्यूटी पर नज़र आते हैं। (जिसकी फ़ोटो भी साँझा की गयी है) तीनो सिपाही इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी भी है।
सिपाहियों की मानें तो आयुष की कार का पीछा करने वाली गाड़ी इतनी तेज थी कि यदि वह बैरिकेडिंग लगाने की कोशिश करते तो शायद उनके साथ भी हादसा हो जाता। पुलिस बैरिकेडिंग और सिपाहियों को देखकर हमलावरों की गाड़ी IT पार्क से दाएँ मुड़कर धोरण पुल होते हुए राजपुर रोड निकल गयी। मौक़े पर मौजूद पुलिस पिकेट वाले अगर वायरलेस करते तो शायद हमलावर पकड़े जाते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आयुष के माथे पर आयी गंभीर चोटों का मेडिकल बताता है की उनके सर पर फोड़ी गई बोतल और किया गया हमला कितना तीव्र था।
अब बात करते हैं इतने बड़े झगड़े की वजह क्या रही होगी? आयुष द्वारा शेयर किया गया स्क्रीनशॉट जिसमें उन्होंने घटना के एक दिन पहले शनिवार की 1:10 मिनट पर अपने अधिवक्ता को एक आर॰टी.आई तैयार करने के लिए अनुरोध किया था। जिसमें साफ़ तौर पर राजधानी में पर देर रात तक चल रहे बार और लाउंज में शराब परोसनें की समय अवधि के बारे में जानकारी प्राप्त करने की बात लिखी है। जब आयुष और उनके सहयोगी द्वारा “फ़र्ज़ी कैफे” मैं देर रात शराब परोसने के साक्ष्य मोबाइल द्वारा फ़ोटो लेकर एकत्रित किए जा रहे थे, (जिसकी तस्वीर आयुष ने समय के साथ शेयर की है)।
तभी वहाँ मौजूद एक जूनियर मैनेजर द्वारा एतराज़ कर बेअदबी की गई मौक़े पर सीनियर मैनेजर रजत के पहुँचने पर मामला थोड़े सी बातचीत में ख़त्म हो गया। इसके बाद आयुष अपनी गाड़ी लेकर खाना पैक कराने साईं मंदिर के बग़ल से होते हुए चार दुकान पहुँचे जहाँ “फ़र्ज़ी कैफे में काम करने वाले लड़के मौजूद थे। उसमें से एक लड़के ने आयुष को अपनी बातों में लगाया और कुछ ही पल में वहाँ ताबड़तोड़ हमला होने लगा। क्योंकि इस बात की रत्ती भर आशंका आयुष को नहीं थी कि इतनी छोटी सी बात को लेकर कैफे द्वारा हमला कराया जा सकता है इसलिए तहरीर अज्ञात में दी गई। यदि यह बात पता होती तो आयुष नामज़द तहरीर देते।
अब इस मामले का दूसरा एंगल यह है की घटना के तुरंत बाद आयुष को पुलिस मदद ना मिलना, IT पार्क पिकट का हमलावरों के ख़िलाफ़ वायरलेस के द्वारा कोई सूचना ना देना और सबसे मुख्य बाद बिना किसी साक्ष्य के पुलिस द्वारा आयुष पर ही उल्टा मुक़दमा दर्ज कर देना वो भी आयुष की एफ़आइआर से पहले, ये सब कहीं ओर इशारा कर रहे है। आख़िर कौन हैं जो इस मामले को पुरज़ोर तरीक़े से भुनाने में लगा है। कहीं इसमें वो तमाम लोग तो शामिल नहीं जिनके ख़िलाफ़ कभी आयुष ने आवाज़ उठायी थी। कहीं आयुष प्रकरण राजनीति की खींचातानी का तो शिकार नहीं हो रहा?
आख़िर पुलिस राजपुर रोड पर चल रहे कैफे वालों पर इतनी मेहरबान क्यों है? क्या यह मेहरबानी बार माफ़ियाओं के रसूख की है या फिर सरकार में कोई ऐसा है जो आयूष को फँसाना चाहता है। उत्तराखंड की सियासत में वो कौन स विधायक है जिसका क़रीबी सरकार की सबसे ताक़तवर जगह बैठकर अपने आका के दुश्मनों को निपटाने में लगा है। यदि इस मामले की स्पष्टता से जाँच होती है तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।