Uttarakhand

एफआरआई में अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस पर विशेष कार्यक्रम का हुआ आयोजन

देहरादून,। वन अनुसंधान संस्थान देहरादून ने अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस को उत्साह और गरिमा के साथ मनाया। इस अवसर पर संस्थान में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें प्रतिष्ठित अतिथियों, समूह समन्वयक अनुसंधान, डीन एवं रजिस्ट्रार, रजिस्ट्रार, विभिन्न विभागों के प्रमुख, वैज्ञानिकों, अधिकारियों, शोधकर्ताओं, संकाय सदस्यों, कर्मचारियों और छात्रों ने भाग लिया। इस वर्ष का थीम ‘वन और भोजन’ था, जिसने खाद्य सुरक्षा, पोषण और सतत आजीविका में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। कार्यक्रम का शुभारंभ सभी उपस्थित लोगों के गर्मजोशी भरे स्वागत से हुआ। वन अनुसंधान संस्थान, के विस्तार प्रभाग की प्रमुख ऋचा मिश्रा ने मुख्य अतिथि डॉ. अनिल प्रकाश जोशी को फूलों का गुलदस्ता भेंट कर स्वागत किया और फिर औपचारिक स्वागत भाषण दिया। उन्होंने इस आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला और इसकी पृष्ठभूमि प्रस्तुत की।
वन अनुसंधान संस्थान की निदेशक, डॉ. रेनू सिंह, ने उद्घाटन भाषण दिया, जिसमें उन्होंने वन संरक्षण और सतत प्रबंधन में एफआरआई की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस 2025 की थीम पर बल देते हुए कहा कि वनों को वैश्विक खाद्य प्रणाली, जलवायु अनुकूलन और पारिस्थितिक संतुलन के महत्वपूर्ण घटक के रूप में मान्यता देने की तत्काल आवश्यकता है।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन के संस्थापक, पद्म भूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी का विशेष व्याख्यान था। उनके प्रेरणादायक व्याख्यान का विषय ‘वन और भोजन’ था, जिसमें उन्होंने खाद्य सुरक्षा और सतत विकास में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने सतत भूमि उपयोग प्रथाओं, वन संरक्षण, जल संसाधन प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के महत्व पर भी बल दिया। मुख्य व्याख्यान के उपरांत, डॉ. रेनू सिंह, निदेशक वन अनुसंधान संस्थान ने डॉ. जोशी को पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास में उनके अमूल्य योगदान के लिए सम्मानस्वरूप शॉल प्रदान किया। इस कार्यक्रम का समापन लोकिन्दर शर्मा, वैज्ञानिक-सी, विस्तार प्रभाग, द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने सभी योगदानकर्ताओं के प्रति आभार व्यक्त किया। यह आयोजन वन संरक्षण और सतत आजीविका के प्रति जागरूकता बढ़ाने तथा समाज को वन एवं खाद्य सुरक्षा के परस्पर संबंध को समझाने में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हुआ।

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