मौसम ने पर्यटन व्यवसायियों को भी “घाम तापने” के लिए मजबूर कर रखा
देहरादून,। बीते वर्षों तक बर्फ की सफेद चादर ओढ़े “औली” प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाती थी, लेकिन इस बार दिसंबर महीना जाने को है और औली तो छोड़िये आसपास की चोटियों से भी बर्फ नदारत है, इसे बदलते मौसम चक्र की मार समझे या प्रकृति की बेरुखी, पर अब तक औली ने न केवल प्रकृति प्रेमी पर्यटकों, स्कीइंग प्रेमियों को निराश किया है बल्कि पर्यटन व्यवसायियों को भी “घाम तापने” के लिए मजबूर कर रखा है। हालाँकि ट्रैकिंग के शौकीन पर्यटक औली, तुगासी, करछी व करछोँ पहुंचकर वहाँ से विभिन्न स्थानों के लिए ट्रैकिंग का लुफ्त अवश्य उठा रहे हैं, लेकिन औली के प्रति मन मे बर्फीली वादियों की जो कल्पना संजोये आ रहे उससे वे निराश तो हो ही रहे हैं। विश्वविख्यात हिमक्रीड़ा केन्द्र औली यूँ ही विश्वविख्यात नहीं बन गया, औली मे विगत कुछ वर्षो तक समय पर बर्फबारी, बर्फबारी के साथ “औली महोत्सव” व स्कीइंग की प्रतिस्पर्धाएं, वर्ष 1986-87 से शुरू हुआ यह सिलसिला 2010 आते आते औली “सैफ गेम्स”के लिए तैयार हो गई और औली की स्कीइंग स्लोप दुनियाभर के स्कीयर्स की पहली पसंद बन गई, लेकिन इस बार अब तक बिना बर्फ के औली का स्कीइंग स्लोप रेगिस्तान की तरह दिख रहा है।
जोशीमठ भू धसाव आपदा 2023 से बंद पड़ी जोशीमठ -औली रोप वे को पुनः शुरू करने की दिशा मे तीन वर्ष बाद भी कोई सकारात्मक पहल नहीं हो सकी, गत वर्षो तक बर्फबारी समय पर नहीं होने के बावजूद भी रोप वे से औली की सैर करने के लिए पर्यटक उमड़ता था लेकिन इससे भी पर्यटकों को निराश ही होना पड़ रहा है।
औली जहाँ कुछ वर्षो पूर्व तक नवंबर के अंतिम सप्ताह से मार्च के पहले सप्ताह तक बर्फ दिखती थी इस बार अब तक रेगिस्तान की तरह नजर आ रही है, औली मे पर्यटन व्यवसाय के माध्यम से वर्षभर की आजीविका चलाने वाले पर्यटन व्यवसायी भी मौसम के इस बदलते रुख से हैरान व परेशान हैं, औली मे समय से बर्फबारी न होने मार न केवल औली बल्कि जोशीमठ सहित पूरे यात्रा मार्ग पर पड़ रही है,, हालांकि सरकार शीतकालीन यात्रा को लेकर सजग भी है और शीतकालीन पूजा स्थलों तक यात्री पहुँच भी रहे हैं लेकिन स्कीइंग व बर्फ देखने के शौकीन पर्यटकों की मुराद पूरी नहीं हो पा रही है।
बर्फ का दीदार करने के लिए पर्यटक औली भी पहुँच रहे हैं लेकिन औली मे बर्फ से लकदक रहने वाली खूबसूरत ढलानों मे धूल उड़ाते छोटे वाहन व घोड़े खच्चर यह सब देख बर्फ व स्कीइंग के लालायित पर्यटकों का निराश होना लाजमी ही है। जोशीमठ जो भू धसाव आपदा के बाद उभरने की जी तोड़ कोशिश मे जुटा है उसे प्रकृति के प्रकोप का भी कोपभाजन होना पड़ रहा है, जोशीमठ को आपदा के दंश से उभारने के लिए समय समय पर अनेक आयोजन भी हुए ताकि देश दुनिया के लोगों तक जोशीमठ की जो तस्वीर भू धसाव आपदा के दौरान पहुंची उससे कुछ निजात मिल सके, लेकिन जब प्रकृति ही साथ नहीं दे रही तो इसमे कोई भी क्या कर सकता है।
अब मौसम के बदलते रुख को समझते हुए तथा बर्फबारी होने तक शीतकालीन पर्यटकों को लुभाने की योजनाओं पर मंथन करने की जरूरत है और जोशीमठ को ट्रैकिंग के आधार शिविर के रूप मे विकसित व प्रचारित करते हुए यहाँ से नीती, माणा, उर्गम व चिनाप घाटी के साथ ही औली, गौरसों, क्वाँरीपास, आदि खूबसूरत ट्रैकिंग स्थलों तक पर्यटकों को सैर कराने की योजना भी तैयार करनी होगी ताकि बर्फबारी के इंतजार किए बिना भी रोजगार के साधन जुटाये जा सके। बहरहाल इस बार तो पर्यटन व्यवसायियों को बर्फबारी का ही इंतजार है और इसके लिए पर्यटन व्यवसायी मंदिरों की चैखट तक भी पहुँच रहे हैं, अब देखना होगा कि प्रकृति कब तक मेहरबान होती है, इस पर पर्यटन व्यवसायियों के साथ ही प्रकृति प्रेमी पर्यटकों एवं स्कीइंग के शौकीन पर्यटकों की नजरें टिकी हैं।


